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दुनिया मे लोग कितने मतलबी है
आज की दुनिया में हम जिस समाज का हिस्सा हैं, वह तेजी से बदल रहा है। भौतिक सुख-सुविधाओं और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की दौड़ में इंसान इतना व्यस्त हो गया है कि मानवीय संवेदनाएँ पीछे छूटती जा रही हैं। “दुनिया कितनी मतलबी है” – यह वाक्य कोई कल्पना नहीं, बल्कि आज का कड़वा सच बन गया है।
जब तक किसी से कोई फायदा होता है, तब तक वह अपना लगता है। जैसे ही स्वार्थ पूरा हो जाता है, लोग मुंह मोड़ लेते हैं। रिश्ते, दोस्ती, और आत्मीयता जैसे शब्द अब सिर्फ किताबों और फिल्मों तक सीमित रह गए हैं। बहुत बार ऐसा देखने को मिलता है कि जिन लोगों पर हम सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं, वही सबसे पहले पीठ पीछे वार करते हैं।
आजकल हर कोई केवल अपने फायदे की सोचता है। अगर किसी की मदद करने से कोई लाभ नहीं है, तो लोग पीछे हट जाते हैं। यह प्रवृत्ति समाज में एक खतरनाक संदेश फैलाती है — कि भावना, सहयोग और निस्वार्थता की कोई कीमत नहीं है।
हालांकि, यह भी सच है कि पूरी दुनिया मतलबी नहीं है। अब भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करते हैं, जिनका दिल अभी भी इंसानियत के लिए धड़कता है। लेकिन उनकी संख्या कम होती जा रही है।
हमें यह सोचना होगा कि क्या हम भी इस मतलबी भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं? अगर हाँ, तो हमें खुद को बदलने की ज़रूरत है। दुनिया को बदलने से पहले हमें अपने भीतर झाँकना होगा और मानवता को फिर से ज़िंदा करना होगा।
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